भिवाड़ी में कर्मचारी राज्य बीमा निगम अस्पताल में मरीजों को कितना इलाज मिलता है, यहां के इलाज से मरीज कितने संतुष्ट हैं। चिकित्सकों का रवैया एवं काम के प्रति लगाव कैसा है, मरीजों से भला कौन इससे परिचित होगा। हालांकि केंद्रीय मंत्री भी यहां के चिकित्सकों की स्थिति जान चुके हैं। लेकिन अब यहां का प्रशासन और चिकित्सक ऐसे नियम बना रहा है जिससे कोई अस्पताल में अंदर प्रवेश ही नहीं कर सके। यहां की दुर्दशा उजागर न हो इसके लिए सभी पर पाबंदी लगाई जा रही है। विशेष पोस्टर चिपकाकर पाबंदी लगाई जा रही है। जबकि काम को लेकर कोई सुधार दिखाई नहीं दे रहा है।
Bhiwadi ESIC Hospital में जाकर मरीजों को मिलने वाले इलाज की पड़ताल की तो फिर एक बार श्रमिकों की पीड़ा उजागर हुई। अपनी पत्नी को दिखाने पहुंचे एक श्रमिक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वह यहां दिखाने आया था। लेकिन चिकित्सकों ने गाजियाबाद में जांच के लिए भेजा है।
श्रमिक ने बताया कि अब छोटी-छोटी जांच के लिए भी गाजियाबाद जाएंगे तो फिर काम कब करेंगे। एक दिन यहां आएं, फिर गाजियाबाद जाएं उसके बाद फिर यहां आए, हम तो ऐसे ही चक्कर लगाकर परेशान हो जाएंगे। वहीं अस्पताल प्रशासन पर्चा चिपकाकर पाबंदी की बात तो कहता है लेकिन यह बताने को तैयार नहीं है कि स्त्री रोग विशेषज्ञ ने कितने प्रसव कराए। उनके अस्पताल में इलाज का रोस्टर क्या है।
अस्पताल प्रशासन मरीजों को बस से अलवर मेडिकल कॉलेज भेज रहा है। अब सवाल उठता है कि मरीज भिवाड़ी में रहकर फैक्ट्रियों में पसीना बहा रहा है और उसे इलाज कराने 90 किमी दूर जाना पड़ रहा है। अगर कोई इमरजेंसी हो जाए तो यहां पेनल में कोई निजी अस्पताल तक नहीं है।
अगर श्रमिक विपरीत स्थिति में निजी अस्पताल से इलाज कराता है तो उसे पुनर्भुगतान बहुत कम मिलता। क्लेम के कागज जमा कराने और क्लेम लेने में कई महीने बीत जाते हैं। इस तरह हर स्तर पर श्रमिक मरीज ही मर रहे हैं। इस संबंध में एमएस डॉ. पुनीत डुंग डुंग से उनका पक्ष जानना चाहा लेकिन उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया।